तेरे नीरस जीवन में मधुर स्वप्न अभी मुझे भरना है।
जिन कातर नयनों में सपने बेजान पड़े हैं
भूखे हड्डी में जिनकी अभी भी जान पड़ी है।
उन नन्हें कोमल अबोध बच्चों की गरज मुझे पड़ी है
सारे रोते बच्चों के धूमिल सपनों की मरज मुझे पड़ी है।
कहो वत्स क्या है मेरा जिसको मैं अपना कह तज दूँ
जिस को खोकर नन्हें अधरों पे मुस्कान तेरे मैं रख दूँ।
तेरे नन्हें कोमल हांथो के बीचों में कलम किताब खेले
मेरा सब कुछ लेकर भी जो अल्हड़ बच्पन तुझको लेले।
पेट कि आग और जीवन के कलुषित ताप को न तू झेले
सुख सारे जिन पे हक है तेरा भी जीवन में लगाए मेले।
उस दिशा को मुझे चलना है तेरे लिए कुछ करना है
तेरे नीरस जीवन में मधुर स्वप्न अभी मुझे भरना है।
तेरे नन्हें हांथो को कलम-किताब के बोझ तले रखना है
कामगार छोटे हांथो को खिलौनों की झंकार से भरना है।
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19-05-2019
…सिद्धार्थ …