तेरे दामन में जितने कांटे हैं
तेरे दामन में जितने कांटे हैं
जो तूने सजा कर रखे हैं मेरे लिए
वो तून मुझ को देदे है भगवान्
तून देखना की सेहन कितना
है मेरे आँचल में,
में ये ही चाहता हूँ
कि संसार सोये
सुख चैन में हर वकत
और में काँटों को
अपने बाग़ में
सजा कर रखा करू !!
कभी तो दया से
तेरी मेरा भी घर
सज जायेगा
और दामन मेरा
भी खुशिओं से तब
भर जायेगा
तब तक उन काँटों
की में रोजाना
सेवा किया करू !!
तूफ़ान जाने के बाद
जब नया दरिया
बह जाता है तब
हर तरफ चमन
ही चमन हो जाता है
में वो देखने के लिए
बस मेरे मालिक
तब तक
जिन्दा रह सकू !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ