तेरी ख़ुश्बू किधर नहीं आती
तेरी ख़ुश्बू किधर नहीं आती
तेरी लेकिन ख़बर नहीं आती
हिज्र में ये सवाल उठता है
जल्द क्यूँकर सहर नहीं आती
है जो उम्मीद इक मुझे तुझसे
पूरी होती नज़र नहीं आती
ग़म की आयीं घटाएँ यूँ घिरकर
राहे मंज़िल नज़र नहीं आती
इश्क़ में डूबकर हुआ ऐसा
अब हंसी बात पर नहीं आती
यूँ ख़यालों में गुम हुआ उसके
मुझको मेरी ख़बर नहीं आती
होश ‘आनन्द’ किसको कहते हैं
बेख़ुदी भी नज़र नहीं आती
~ डॉ आनन्द किशोर