उसका हर झूठ सनद है, हद है
ग़ज़ल
उसका हर झूठ सनद है हद है
मेरी सच बात भी रद है हद है
इक ही शाइर वो अदद है हद है
जैसे ग़ालिब है असद है हद है
ऐसी करता वो मदद है, हद है
छोटा करता मेरा क़द है, हद है
भूख से लोग गँवाते हैं जान
और सड़ती ये रसद है, हद है
क़त्ल-ओ-ग़ारत ये तशद्दुद, नफ़रत
सब उसे लगता सुखद है, हद है
पाँच कहता है जो दो और दो को
फिर भी वो अहल-ए-ख़िरद है, हद है
मुँह पे तारीफ़ के पुल है उसके
दिल में दरिया-ए-हसद है, हद है
ज़ुल्म उसका कि ‘अनीस’ अपना ज़ब्त
सब कहो साथ कि हद है हद है
– अनीस शाह ‘अनीस’