तेरी सूरत
जहाँ भी देखता हूँ , इस “जहाँ” में तेरी सूरत नज़र आती है,
तेरी सूरत में इस “ जहाँ ” की सारी खुशियाँ नज़र आती है ,
तेरी एक नज़र ने मुझको किस मुकाम पर ला दिया ?
खुद “शमां” में जलकर रोशनी के समंदर में बिठा दिया,
तूफानों के बीच प्यार का दीपक मेरे हाथ में जला दिया ,
मेरी डूबती नैय्या को इस “जहाँ के मांझी” से मिला दिया I
जहाँ भी देखता हूँ, इस “जहाँ” में तेरी सूरत नज़र आती है,
तेरी एक नज़र से बिगड़ी हुई तक़दीर भी संवर जाती है ,
“ राज ” को नहीं था, अब तक यह भान ,
अब वो न रहा वह इस राज से अनजान ,
छणभंगुर जीवन पर था उसे बहुत अभिमान ,
तेरी सूरत के सामने चूर हो गया मेरा गुमान ,
“परम पिता ” की सूरत को गया अब पहचान I
जहाँ भी देखता हूँ, इस “जहाँ” में तेरी सूरत नज़र आती है,
इस सूरत में जगत के पालनहार की तस्वीर नज़र आती है I
देशराज “राज”