तेरी शिक़ायत करूँगा
ना सता मुझें इतना मैं ख़ुदा से तेरी शिक़ायत करूँगा
दिल्ली जाऊँगा किसी रोज़ मेरी जाँ तो तेरी माँ से तेरी शिक़ायत करूँगा
तू ज़रा ज़रा सी बात पर मुझें इतना ना तड़पाया कर
मैं जो रूठ गया इस मर्तबा ,इस जहाँ से तेरी शिक़ायत करूँगा
फूल हों या काँटें मैं दोस्ती सबसे कर लिया करता हूँ
मैं तेरी बहना से भी दोस्ती कर लूँगा फ़िर तेरी बहना से तेरी शिक़ायत करूँगा
मत इतरा जो मैं तुझें अब कुछ कह नहीं सकता मेहरबां
मैं इन बादलों से इन वादियों से इस हवा से तेरी शिक़ायत करूँगा
देख ले तुझें भी कटघरे में ये सब खड़ा कर देंगे ,फ़िर सजा देंगे
ना करना तू अलैयदा जिस्म से जाँ मैं हर दफ़ा से तेरी शिक़ायत करूँगा
~अजय “अग्यार