तेरी रहगुज़र से गुज़र गये
तेरी रहगुज़र से गुज़र गये
कभी रुक गये कि ठहर गये
तेरे अश्क़ गाल पे देखकर
मेरे जिस्मो-जाँ भी सिहर गये
मेरी नींद में भी किया है घर
मेरे ख़्वाब के वो नगर गये
तेरे हाथ संग दिखा अगर
सभी आइने से बिखर गये
तेरी उल्फ़तों का दिमाग़ पर
जो तमाम थे वो असर गये
जो खड़े हुये थे बहार में
वो हबीब आज किधर गये
जो कहा था आपने आँख से
वो पयाम जान उधर गये
वो सलाह थी मेरी काम की
कर अनसुनी वो मगर गये
मुझे राज़ उन पे था खोलना
ये लगा मुझे कि सुधर गये
– डॉ आनन्द किशोर