तेरी यादों की स्याही
तुझे इतनी बार याद किया है,
कि दिमाग के पन्ने कम पड़ गए हैं ।
हम दोनों की इतनी कहानियां लिखी हैं,
कि यादों की स्याही अब खत्म होने लगी है ।
लेकिन तेरा तो कहीं नाम-ओ-निशान ही नहीं है ।
जैसे गायब होगई हो किसी रात की परी की तरह,
जैसे लौट गई हो चुभती धूप में छांव की तरह,
जैसे प्यासा छोड़ गई हो रेगिस्तान में पानी की तरह|