तेरी मोहब्बत
तेरी वेखुदी ने मुझे न जाने कहाँ पहुँचाना है
जान गया हूँ कि अब ये दिल वेगाना है
बड़ रहा है ज्यों ज्यों दर्दे जिगर मेरा
लग रहा इश्क ने छेड़ा तेरा तराना है
तड़प रही है मोहब्बत तुझसे मिलने को अदद
कौन समझेगा ये मेरी रूह का अफसाना है
तू ही तू है मेरे ज़हन औ वजूद में
बिन तेरे महबूब बेनूर सारा ये ज़माना है
जबसे देखा है तुझे ऐ मेरे जॉ नसीं
तबसे तुझको ही मैंने मेरा तो खुदा माना है
बन गया सबब तुन ही मेरी इवादत का
मेरे खादिम मेरे मौला बस तुझे पहचाना है
कह रहे है ये अश्क आँख से प्रतिभा
तेरे वाजुओं में ही मेरा अब आशियाना है
डॉ प्रतिभा प्रकाश