तेरी-मेरी जो लिखो जब भी कहानी लिखना
तेरी-मेरी जो लिखो जब भी कहानी लिखना
सिर्फ़ तुम ज़ीस्त को मौज़ों की रवानी लिखना
तुमने वादा तो मुलाक़ात का कर रक्खा है
गर लिखो ख़त न सही बात ज़ुबानी लिखना
बाँसुरी सुन के क़दम थिरके अगर राधा के
उसको हर हाल में किशना की दिवानी लिखना
दे सुकूँ सबको यहाँ और मुहब्बत बांटे
काम आए जो ग़रीबों के जवानी लिखना
उसको आदत है कि पानी को सदा आग लिखे
उसको आता ही नहीं आग को पानी लिखना
जो मरा है न कभी और मरेगा न कभी
छोड़कर उसको हरिक चीज़ को फ़ानी लिखना
नाम दानी का भले लिखने से चूको बेशक़
मार ले हक़ जो कभी उसको न दानी लिखना
चीज़ बेशक़ से नई सबको लगे तो क्या है
है पुरानी तो उसे तुम भी पुरानी लिखना
मुस्कुराता है सदा बात करे हंसकर वो
यार दिलदार है ‘आनन्द’ को जानी लिखना
स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर