तेरी मुहब्बत में हम खुद से गये हैं
तेरी मुहब्बत में हम खुद से गये हैं
पहले बहुत कुछ थे अब कुछ से गये हैं
झड़ गये पत्ते शाख से बिछड़े फूल
आँधियों से उलझकर लुट से गये हैं
आई जब मेरी बारी तो टूट गया
जाने कितने लोग इस पुल से गये हैं
मौसम-ए-वस्ल-ए-यार सबसे हसीं लगा
गुजर के हर जज़्बात हर रुत से गये हैं
जब से फूल और फलों वाले हुए हैं
मेरी बस्ती के शज़र झुक से गये हैं
मतलबी उन लोगों को देखता हूँ में
बहाने ढूँढनें में जुट से गये हैं
तुम क्या ‘सरु’ क्या आज के बच्चे भी
वक़्त के साथ बहुत खुल से गये हैं