तेरी महफ़िल में सभी लोग थे दिलबर की तरह
तेरी महफ़िल में सभी लोग थे दिलबर की तरह
एक मैं ही था फ़क़त, काबे में काफ़र की तरह
मेरे भीतर तो कोई डूबता सूरज भी न था
मुझको देखा गया क्यों शाम के मन्ज़र की तरह
इक मसाफ़िर है, कभी ग़ौर से देखेगा मुझे
मुद्दतों से हूँ खड़ा मील के पत्थर की तरह
किसका चेहरा था अयाँ किसका था,वह अक्से जमील
आईना ख़ुद ही परेशान था शश्दर की तरह
मुस्कुरा कर वह मिला ग़ैर से, मुझसे बचकर
बस यही बात मुझे चुभ गयी निश्तर की तरह
देखने वालों की आंखों का है धोका “आसी”
एक सहरा मैं, नज़र आता हूँ सागर की तरह
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सरफ़राज़ अहमद आसी