तेरी धरती का खा रहे हैं हम
कितनी नेअमते उगा रहे हैं हम
तेरी धरती का खा रहें हैं हम।
मस्ती में झूमकर चली पुरवाई
चिलचिलाती धूप छांव सुखदाई
कटहल,नाशपाती,जामुन,अमराई
मेवे देता शुद्ध हवा जीवन दायी
फूलों से जमीं सजा रहें हैं हम,
तेरी धरती का खा रहे हैं हम।
नदियां धरती को सिंचती चलती
हिमालय तेरे गोद से निकलती
करती रवानी सागर में मिलती
संगम ,घाट पापों को धुलती
तेरी कृपा से सुख पा रहे हैं हम
तेरी धरती का खा रहे हैं हम।
चांद से निकले शीतल चांदनी
सूरज से सुख पा रहा आदमी
सुकून देती हैं ये रातें , रागनी
मोर के पंख नीले,हरे,जामुनी
मस्त हवा में लहरा रहें हैं हम
तेरी धरती का खा रहे हैं हम।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर