तेरी दोस्ती को ज़िंदगी की जान मानती हूँ
तेरी दोस्ती को ज़िंदगी की जान मानती हूँ
लबों की मुस्कुराहट दिल का अरमान मानती हूँ
खुदा के बनाये रिश्ते बहुत अनमोल हैं लेकिन
तेरी दोस्ती को अपनी पहचान मानती हूँ
सुरूर सा रहता है ख़ुशनसीबी का अपनी
हर मुश्क़िल सफ़र की अपने आसान मानती हूँ
बस यही दुआ रहती है लब पर तेरे वास्ते
उस रब से तेरी खुशियों का सामान मानती हूँ
तेज़ धूप में शज़र का साया दीया अंधेरे में
चाँद तारों से सजा सिर पे आसमान मानती हूँ
तेरी राहों को मोड़ दिया जिसने दिल तक मेरे
मैं उस लम्हे उस वक़्त का एहसान मानती हूँ
समझ जाये बातें ‘सरु’ की लब खोलने से पहले
मेरे साथ गुनगुनाये वो हम ज़बान मानती हूँ