तेरी जुस्तुजू
तुझे ढूंढता रहा मैं वादियों के नज़ारों में,
तन्हा भटकता रहा मैं वीरान राहों में,
पता ढूंढा तेरा दीनी तज़्किरो की मजलिसों में ,
खोजता रहा तुझे दानिश-मंदों की सोहबतों में ,
कभी मुसव्विर बन तुझे तस्वीरों में उकेरा,
कभी शिद्दत से तेरा अक्स पत्थरों में तराशा,
पर तेरा पता मुझे कहीं ना मिला,
तेरी जुस्तुजू में और भी उलझता गया,
मैं ये जान ना सका तू तो इंसां के
दिल में बसता है,
हमदर्दी तेरा खून,ज़मीर तेरी सांस,
ईमान तेरा दिल होता है,
इंसानियत तेरी इबादत , अख़लाक़ तेरी नफासत है,
अब तक रहा तेरे वजूद से मैं बेखबर ,
नाहक भटकता रहा मैं सराबों में इधर-उधर।