तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा, कितने रंगीन सपने सजाता रहा।
चाहत
तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा,
कितने रंगीन सपने सजाता रहा।
मन में उठती उमंगों का इक जोश था,
तब कहाँ वक्त का कुछ हमें होश था
दिन-व-दिन देखने को तरसती नज़र,
तुझको पाने को रव को मनाता रहा
तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा
कितने रंगीन सपने सजाता रहा।
रोज का ये अहम एक था सिलसिला,
आज ना कोई शिकवा नहीं है गिला,
चाहने से कहीं कोई कब है मिला
वो ही मिलता जिसे रव मिलाता रहा,
तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा
कितने रंगीन सपने सजाता रहा
अनुराग दीक्षित