तेरी गुस्ताख निगाहों में हया देखी है।
तेरी गुस्ताख़ निगाहों में हया देखी है
तेरी बेलौस अदाओं में वफ़ा देखी है
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बात मेहर की करूँ लफ्ज़ नहीं आएँगे
तेरी ज़ुल्मत में भी जब हमने शिफा देखी है
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मेरी पेशानी पे बल पड़ते तो पड़ते कैसे
हमने हर बात में जब रब की रज़ा देखी है
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हमको ईनाम से परहेज़ नहीं है लेकिन
मौज़ ही मौज़ है हमने वो सजा देखी है
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तोहमतें ले लीं सभी सर पे हुए हैं रुसवा
दोस्ती रश्क करेगी वो दग़ा देखी है
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वजूद रहता है पर्दा मगर नहीं रहता
परदे के पीछे वो नज़रों की अदा देखी है
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जिसके आने से सहमकर सिकुड़ गये पत्ते
” नज़र” ने दहर में ऐसी भी सबा देखी है
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