तेरी कमी
कभी छत तो कभी दीवारें मयस्सर नहीं हुई
मैं वो घरौंदा हूँ जो कभी घर न बन सका
आज फिर आंख में नमी सी है
तेरे बिना जिंदगी में कमी सी है
धड़कने खामोश है और दिल उदास
मेरी सांसे भी जैसे आज थमी सी हैं
तमाम उम्र चली गई, लेकिन खतम हुई ना तलाश है
सारा मैखाना पी चुका फिर भी लबों पे प्यास है