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22 Jul 2021 · 1 min read

तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं – ग़ज़ल

तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं – ग़ज़ल

तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं

तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |

जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये

अपने ज़ख्मों को सी रहा हूँ मैं |

इक तेरे दीदार की आरज़ू है, मेरा मकसद

अपने दरवाजे की चौखट पर , निगाह लगाए बैठा हूँ मैं |

तेरी एक मुस्कराहट ने जगाई थी , एक उम्मीद मुझमे

तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं |

तुझे परवाह है अपनी, और अपनों की

तेरी चाहत में खुद को , फ़ना कर रहा हूँ मैं |

पीर दिल की मिटा जा , और दिल को दे जा सुकूँ

इस दिल के इक – इक ज़ज्बात को पिरो रहा हूँ मैं |

तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं

तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |

जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये

अपने ज़ख्मों को सी रहा हूँ मैं | |

3 Likes · 2 Comments · 208 Views
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