तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं – ग़ज़ल
तेरी उम्मीद में जी रहा हूँ मैं – ग़ज़ल
तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं
तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |
जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये
अपने ज़ख्मों को सी रहा हूँ मैं |
इक तेरे दीदार की आरज़ू है, मेरा मकसद
अपने दरवाजे की चौखट पर , निगाह लगाए बैठा हूँ मैं |
तेरी एक मुस्कराहट ने जगाई थी , एक उम्मीद मुझमे
तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं |
तुझे परवाह है अपनी, और अपनों की
तेरी चाहत में खुद को , फ़ना कर रहा हूँ मैं |
पीर दिल की मिटा जा , और दिल को दे जा सुकूँ
इस दिल के इक – इक ज़ज्बात को पिरो रहा हूँ मैं |
तेरी उम्मीद में , जी रहा हूँ मैं
तेरी उम्मीद में पी रहा हूँ मैं |
जाम नहीं है , आंसुओं का समंदर है ये
अपने ज़ख्मों को सी रहा हूँ मैं | |