तेरी आवाज़ के फूल
आवाज़ों के जंगल में,
वो तेरी आवाज़ के फूल
कभी रहते इससे रूबरू
तो कभी जाते हो भूल
महज़ कुछ लम्हें करने हैं
तुम्हें नाम हमारे,
इन लम्हों में भी
तुम क्यूँ रहो हम से दूर,
आवाज़ों के जंगल में,
वो तेरी आवाज़ के फूल,
सुन कर महकते हैं,
दिन-रात सहर-शज़र हमारे
जानते हुए भी क्यूँ,
बैठे रहते हो उस कूल,
आवाज़ों के जंगल में,
वो तेरी आवाज़ के फूल,
गर चाहते हो दूर जाना हमसे,
जाना चाहते हो सब भूल,
तो क्यूँ नही चले जाते,
उड़ा रहे यूँ जो वहम की धूल,
आवाज़ों के जंगल में
वो तेरी आवाज़ के फूल…..