तेरी आंखे
तेरी आंखें
तेरी आंखों की क्या तारीफ करूं ।
ये हैं गहरी झील सनम
सोचता हूं इनमें डूब मरूं
तेरी आंखों की गहराई का
शायद कोई अन्त नही
नीली-नीली इन आंखों में
समुन्द्र लगते हैं कई
दिल चाहता है समुन्द्र में उतर
जी भर आज गोते लगा लूं ।
तेरी आंखों की क्या तारीफ करूं ।
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नवल पाल प्रभाकर