तेरा साथ
तुम साथ थी मेरे जब तब बात ही अलग थी
हर सुबह थी सुहानी हर साझ सुरमयी थी
चाहत में दिल मगन था कलियों सा खिल उठा था
भंवरे को जब मोहबत किसी फूल से हुई थी
बुलबुल सी उसकी बोली दिल में मिठास घोले
सुनले जो कोई पाहन, दरिया वहाँ से निकले
बैरंग सब नज़ारे रंगीन हो रहे थे
तेरी गली में साथी दिल मेरा रोज डोले
कालीन की जरूरत तब मुझको तो नहीं थी
बाँहो में उसकी साथी दुनिया मेरी मगन थी
साये में उसके साथी रंगीन था जहाँ भी
अब बिन तेरे ओ साथी रंगीन कुछ नहीं है
बिन तेरे मेरे साथी आलम मेरा है बदला
मधु की मिठास भी अब आँखो में नमक घोले
कोकी की मीठी बोली दिल को है दर्द देती
हर डाल आम की अब तेरा पता है पूछै
हर कोई जहाँ में ये पाठ शीख ले अब
करनी है बस मोहबत ये रीत जोड़ ले सब
धरती पे दिल मगन हे चाहत नहीं गगन
बस साथ हो तुम्हारा ,चाहत नहीं कफ़न की
ऋषभ तोमर (राधे)