— तेरा भी तेरे काम का नही —
कितना कमा ले प्राणी तू
सब कुछ न तेरे काम आएगा
तेरे काम का भी तो यहाँ
मजे दूजे उस के ले जाएगा
खुद को कितना तपा ले
कभी सोना तू न बन पायेगा
तेरा ही अपना आगे चलकर
तुझ को खुद पर बोझ बतायेगा
कैसी रचना रच डाली खुदा ने
कैसे कैसे रिश्ते नाते बनाये
ऐसे उन को अपना कैसे कह दें
जो जीवन में कभी काम न आये
जब तक जिए तब तक कमाया
उस के बाद सब लूट सा गया
साँसों की डोर जहाँ टूटी तेरी
तब ही लगेगा अजीत सब खोया ही खोया
अजीत कुमार तलवार
मेरठ