तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
मन विकल-विकल हो उठता है।
पाता हूँ खुद को पिंजरे में,
तन आकुल व्यग्र हो उठता है।
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
जन्मों का संचित पाप मुझे,
तुझसे दूर किए देता है,
मन ठहर गया यदि सुमिरन में,
जग फिर भरमाए देता है।
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
तेरा अंश है प्रभु कण-कण में,
हर पल यही गुण गाता हूँ।
हर विपदा में तू पास खड़ा,
मन को समझाये देता हूँ।
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
मन बोझिल है मृगतृष्णा से,
तन अंगारों सा दहकता है।
कैसे मैं तेरा भजन करूँ,
मन बिलख-बिलख कह उठता है।
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
तेरी कृपा कब होगी प्रभु,
यह नैन बिछाये रहता हूँ।
अब तो सन्मुख आ जाओ मेरे,
तेरे चरण की धूल जो पा लूँ प्रभु।
तेरा धुन प्रभु जब सुनता हूँ…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -२४ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201