तेरा गांव और मेरा गांव
बहुत सुंदर है तेरा गांव,
फैली है चारों ओर
हरियाली ही हरियाली
कोयल की कुहू कुहू
पपीहे की पीहू पीहू
चिड़ियों की चहचहाहट
मधुर ध्वनि में गाए बुलबुल,
सिमेंटिड सड़क नालियों वाली
स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत
पक्तियां लिखी दीवारें,
चौपाल पर बैठे हुए,
हुक्के की गुड़गुड़ के संग,
सरपंच साथ बतियाते
बड़ी कुर्सी पर बैठे चौधरी भूदेव प्रसाद ।
बहुत सुन्दर है तेरा गांव।
खेतों में मजदूरी करता
हरिया, झम्मन ,गोपाली
गलियों को झाड़ू से सकेरती
धनिया , कल्लो बेचारी,
जंगल में बकरियों को घेरता
फटेहाल रमुआ डहेलिया
गांव को जोड़ती कच्ची सड़क
ईंटों के खड़ंजे
बदबूदार कीचड़ भरी गलियां
अधनंगे घूमते मजदूरों के बच्चे
टूटी लाठी संग चलती
परवतिया की दादी,
शाम को शहर से घर लौटते मजदूर
खेतों से वापिस लौटते दिहाड़ी मजदूर
और मजदूरों के साथ,
उनके बच्चों की उम्मीद
जिसे लाते हैं वे छुपाकर
कपड़े के थैले में बांधकर
क्योंकि कल लौटना है
फिर से उसी राह, उसी स्थान
प्रतिदिन की तरह मजदूरी पर
मालिक की गाली खाने,
ठेकेदार की गुस्सा का शिकार बनने
और अपनी बेबसी से लड़ने को ।
ऐसा है मेरा गांव ।