तेज़
जज्बे भी जिंदा दिमाग में होते हैं।
मंदबुद्धि केवल समाज में रोते है।।
जो समझ सके न बात, वो जज्बात कहां समझेंगे।
देख न पाए जो प्रकाश में,अंधियारे में क्या देखेंगे।।
प्रज्ज्वलित दीप ही करता है, दूर अंधेरा जीवन से।
दीया बाती और तेल महज, क्या लड़ सकता है तम से।
है तेज़ नहीं यदि जीवन में, निष्प्राण शरीर का क्या करना।
यदि नहीं प्रकाशित किए बंधु, फिर क्या जीना क्या मरना।।
जय हिंद