तृष्णा
तुझसे दूर जाने का
जब भी मन बना लेता हूं मै
रूप बदल कर हर बार
बुला लेती है तू ।
वश मे कर रखा है तूने
जकड़ रखा है मुझको
कई बार जिन्दगी मे
भटका देती है तू ।
निरंकुश चक्रवात के भंवर से
निकल नही पाता हूं मै
दिल की चाहत को
इस कदर जगा देती है तू ।
सदियों से हर कोई
यहां गुलाम है तेरा
ख्वाबों मे न जाने
क्या क्या दिखा जाती है तू ।।
राज विग 16.06.2019.