‘ तृप्ति ‘
सोनू और रमेश सुबह से बहुत खुश थे आज माँँ के साथ मेला जो जा रहे थे । माँ ने मेला जाकर खिलौनों की दुकान सोनू और रमेश की मदद से सजा ली और अपने ग्राहकों में व्यस्त हो गई । साल भर में चार पाँच बार ही तो मेला लगे बाकी समय तो घर – घर जाकर बेचना पड़ता हैं उसको…अपने दोनों छोरों से थोड़ी बहुत मदद मिल जावे उसको वो इसी से खुश हो जाती । आज मेले में सोनू और रमेश इधर – उधर घूम कर वापस माँ की दुकान के पास आ ही रहे थे की अत्यधिक भीड़ के चलते माँ की दुकान भूल गये , बच्चे का माँ से बिछड़ना ही सबसे बड़े डर का कारण होता है दोनो डर कर रोने लगे तभी एक युवती ने उन दोनों को रोक लिया , उन दोनों को चुप करा उस युवती ने पहले इन दोनों को पास की दुकान से खाना खिलाया फिर दोनों के लिए रंग बिरंगी टी – शर्ट और खिलौनों की खरीदारी की । माँ भले ही खिलौने बेचती हो लेकिन उनको वो खिलौने छूने भी नही देतीं थी , भला खिलौनों के प्रति बच्चों का आकर्षक कभी कम हो सकता है दोनो ने टी – शर्ट झट वहीं पहन ली , युवती के हाथ में कैमरा देख दोनो समझ गये की ये उनकी फोटो भी खींचना चाहती है । बड़े दिनों से दोनो की चाहत थी फोटो खिंचवाने की लेकिन कोई खींचता ही नही था आज तो मन की मुराद पूरी हो रही थी । भरे पेट और तृप्त मन से दोनो फोटो के लिए मुस्कराते हुये खड़े हो गये ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/02/2021 )