तू है एक कविता जैसी
तू है एक कविता जैसी
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तू है एक कविता जैसी,
भाव बोध हजार है,
शोभित है यूं शब्द सरस ज्यों,
रोम रोम अलंकार है,
तू है एक कविता जैसी,
भाव बोध हजार है ।।
कभी वर्तनी तेरी सुधारूं
कभी अभिव्यक्ति पर अधिकार है
कहीं कभी तू हर शैली में सुंदर
मुखड़े पर ये बिंदी, नुक्ता सा श्रृंगार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।
सुबह निहारू सांझ पुकारू
गुनगुनाते बारंबार है
सरल सहज मृदुल मनमोहक
रस की कोई बौछार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।
प्रीत रीत की मीत बनी तू
अद्भुत सा संगीत बनी तू
रोगी से इस करुण हृदय का
ये कविता ही अब उपचार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी