तू ही खास आजकल
तू ही तो है खास आजकल
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तू ही तो है खास आजकल,
दिल जो तेरे पास आजकल।
हाथों को यूं देखकर जुड़े हुए,
लगता हूँ मैं दास आजकल।
बदली छाई – स्याह आसमां,
मौसम भी है रास आजकल।
उलझी – उलझी जिंदगी रही,
बिखरी जैसे ताश आजकल।
मनसीरत बन कर रहा आदमी,
चलती फिरती लाश आजकल।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)