तू ही कह ए लेखनी!
तू ही कह ए लेखनी! तुझे कैसे हाथ लगाना छोड़ दूं?
रगो से बहते लहू में कैसे शब्द-भाव बहाना छोड़ दूं?
जीवन के बलिदानों की कोई नीति-रीति तो होगी ना,
शर्त है सांसे लेने की तो कैसे दिल धड़काना छोड़ दूं?
-शशि “मंजुलाहृदय”
तू ही कह ए लेखनी! तुझे कैसे हाथ लगाना छोड़ दूं?
रगो से बहते लहू में कैसे शब्द-भाव बहाना छोड़ दूं?
जीवन के बलिदानों की कोई नीति-रीति तो होगी ना,
शर्त है सांसे लेने की तो कैसे दिल धड़काना छोड़ दूं?
-शशि “मंजुलाहृदय”