तू समझे न
22 22 22 22 22 2
ग़ज़ल
दिल आया है तुझ पर दिलवर तू समझे न।
मन मन्दिर में मेरे रहकर तू समझे न।।
हाल भला क्या बतलाऊँ मुख से साजन ।
नैनों की भाषा भी पढ़कर तू समझे न।।
रह रहकर जब पीर विरह की उठती है।
अश्रु धारा बहती झर झर तू समझे न।।
इक बार तो रब को खोज जरा अन्तर्मन में।
मृग की तरहा भटके दर दर तू समझे न।।
सोलहवें सावन में बैरन हुई पवन
तेरे नाम की जबसे ओढ़ी चुनर तू समझे न।।
फिसल रहा है वक़्त रेत सा हाथों से
ज्यों साँप सरकता है सर सर तू समझे न।।
गर्व से अकड़े पेड़ उखाड़े आँधी ने।
लचक बचाती है झुककर तू समझे न।।
मत करो जतन ज्योति को भुलाने का हमदम।
अब चले नहीं कोई मंतर तू समझे न।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा