#तू वचन तो कर
✍
★ #तू वचन तो कर ★
वचन तो कर तू चलने का
मैं सूरज के उस पार चलूँ
आधियाँ और व्याधियाँ
सबको बारंबार खलूँ
सीता बिन कैसी रामकथा
कैसे मन में भाव भरूं
यथा प्रजा और तथा हो राजा
औंधी पैड़ी नहीं चढ़ूं
वचन तो कर
तू वचन तो कर
मनुज तरे मर-मरके जिये
उसे व्याप्ती लाज नहीं
कल भी था वो कल भी होगा
लेकिन दिखता आज नहीं
शीत तपन जिसने पहचाने
उसी भवन से बात कहूँ
स्वामी स्वामित्व लौटाले कभी
यहीं रहूं यहीं टहलूँ
वचन तो कर
तू वचन तो कर
चाँद और तारे नियति मारे
बंधे हुए इक डोर से
कलियाँ खिलतीं फूल विहँसते
आँख चुराकर भोर से
प्रीत बंजारन हुई भिखारन
मुचुकुंदनेत्र-सा क्यों न जलूँ
दु:स्वप्नों के भस्मी होने तक
मैं निश्चय से नहीं टलूँ
वचन तो कर
तू वचन तो कर
भग्नहृदय और अश्रु पूंजी
सड़कों पर निकली टोलियाँ
देसवाल कहलाते परवासी
जली लोकलाज की होलियाँ
उगते जहाँ नित नए नियम
कलश कंगूरों को बदलूँ
जलप्लावन अंतिम मर्यादा
तूफानों से न दहलूँ
वचन तो कर
तू वचन तो कर
न कोई आगे न कोई पीछे
केवल मैं मेरा व्यापार
न कोई मेरी बांह पकड़ता
न कोई पूत है तारणहार
नीम तले नित-नित मैं नहाऊं
नदिया की छाया छू लूँ
तुम जो आओ साथ मेरे
मरीचिका माया भूलूँ
वचन तो कर
तू वचन तो कर
आ दीपक बाती हो जाएं
कल कोई अपनी कथा कहे
धरती आकाश सखा पुराने
दूर खड़े बतिया रहे
सांसों में महक हो तेरी
तेरे हिरदे बनकर प्यार पलूँ
तेरी हाँ हो जाए यदि
विजयपथ को मैं निकलूँ
वचन तो कर
तू वचन तो कर . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२