तू छीनती है गरीब का निवाला, मैं जल जंगल जमीन का सच्चा रखवाला,
ये सियासत…
तू मुझे गलत ना समझ
ना मैं धर्म विरोधी हूं,ना मैं नक्सली हूं,
मुझे नकली समझने की भूल ना कर पगली मैं असली हूं।
चाहे लाख सितम सहूंगा,
पर स्वयं को आदिवासी ही कहूंगा।
मैं आक्सीजन वाला बुढ़ा बरगत सा,
तू फसल खराब करने वाली खरपतवार सी,
मेरी जमीन पर तूने अपना घर बसाया,
उल्टा मुझे ही अपने षड्यंत्रकारी इशारों पर नचाया।
चाहे लाख सितम सहूंगा,
पर स्वयं को आदिवासी ही कहूंगा।
तू मुझे कभी असुर कहती,कभी राक्षस कभी जनजाति ,
आज कहती वनवासी,कल कहेगी स्वर्गवासी,
किस बात का डर है तुझे ?
मुझे क्यों नहीं कहती आदिवासी।
चाहे लाख सितम सहूंगा,
पर स्वयं को आदिवासी ही कहूंगा।
मैं आदिवासी था , आदिवासी हूं और अंतिम सांस तक आदिवासी रहूंगा।
चाहे लाख सितम सहूंगा,
पर स्वयं को आदिवासी ही कहूंगा।
तू छीनती है गरीब का निवाला,
मैं जल जंगल जमीन का सच्चा रखवाला,
चाहे लाख सितम सहूंगा,
पर स्वयं को आदिवासी ही कहूंगा।
:राकेश देवडे़ बिरसावादी