तू चला चल
व्योम में अभिमान बनकर तू चला चल
पुण्य थल का मान बनकर तू चला चल
तू गरजता तू बरसता पर्वतों से
जन जगत कल्याण बनकर तू चला चल
आसमाँ का छत महकता तेरे दम से
तू कृपा का हाथ रख दे तो सवेरा
हर कोई आनंद लूटें श्वेत वन का
खिल उठी कोंपल युगों तक कौन ठहरा
भूमि का वरदान बनकर तू चला चल
जन जगत कल्याण बनकर तू चला चल
तू नहीं आता दुखों का नीर बहता
बाण छोड़ों घन दया की वृष्टि कर दो
आज भारी पड़ गया संधान जग का
वृक्ष वल्ली से ही जीवन ऐसा क्षर दो
अधरों की मुस्कान बनकर तू चला चल
जन जगत कल्याण बनकर तू चला चल
बादलों से गूँज उठ्ठी एक आशा
लाँघ दहली तू क्षितिज का धूम श्यामल
जाग तुझको दूर जाना हो न मूर्छित
बह रहे क्षण क्षण दृगों से खारे बादल
हौसलों के प्राण बनकर तू चला चल