तू कौन है?
यह प्रश्न भी बड़ा अजीब है
आज भी जब यह पूछना पड़ता है कि तू कौन है?
या मन के किसी कोने में यह प्रश्न दस्तक देता है
कि आखिर कौन है
तेरा मेरा रिश्ता क्या और क्यों है?
जिसका उत्तर नहीं मिलता
और प्रश्न ज्यों का त्यों रह जाता है।
क्योंकि इस प्रश्न का तेरे पास तो क्या
ईश्वर के पास भी उत्तर जो नहीं।
फिर कौन देगा इसका उत्तर- शायद कोई नहीं।
क्योंकि तू मिली भी तो जीवन के उत्तरार्ध में
चलते चलते यूं ही अचानक
बड़ा अप्रत्याशित था तेरा मेरा मिलना
माध्यम भी कोई और बना
न जान न पहचान न कोई संपर्क न कोई रिश्ता
एक दूजे की शक्ल तक से अनजान
शायद सौभाग्य ने हमें पहले एक सूत्र में पिरोया
फिर मिलाया और बांध दिया
हमें रिश्तों के अटूट बंधन में,
जिससे बचना मुश्किल ही नहीं असंभव है,
लेकिन ईश्वर की इच्छा ही यही है
क्योंकि इस रिश्ते का यही तो बल है।
पहले बहन बनी और फिर कब बेटी बन गई
कि कुछ पता ही न चला
जिम्मेदारियों का बोझ बिना कुछ किए या कहे
जाने क्या सोच मेरे सिर पर रख दिया
या यूं कहूं कि मैं ही रखता चला गया
बस पूर्व जन्म के क़र्ज़ का हिस्सा समझ
स्वीकारता चला गया।
पर यह नहीं जान पाया कितने जन्मों पूर्व का
ये रिश्ता है हमारा तुम्हारा
तुम्हें आखिर क्यों लगता है
जो ये रिश्ता इतना प्यारा।
और मुझे इतना डर क्यों लगता है
जबकि तू मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा भी अब है।
सचमुच हमारा रिश्ता है बड़ा न्यारा
जो इस जन्म में भी इतने लंबे अरसे बाद निखरा।
और अब मुझमें तो पूछने की हिम्मत ही नहीं रही
क्योंकि तुझे पाकर अब खोने की हिम्मत नहीं बची।
शायद इसीलिए कि तू कल तक तो बहन थी
आज तो लाड़ली बेटी बन इतरा रही है।
फिर यह कहने सुनने का अब मतलब ही क्या है
कि तू कौन है? और तुझसे मेरा रिश्ता क्या है
कितने जन्मों पूर्व का है
बस! अब तो इतना ही पर्याप्त है
कि हमारे रिश्तों का सूत्र
अपने सबसे ऊंचे शिखर पर हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश