तुलसी चौरा_
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हुई सुबह तुलसी चौरे पर.
तुलसी के कोमल फुनगी को
रवि ने हल्के छुआ ,
हुआ मन चंचल, हुआ विहान.
अनुभूति ईश्वर का उपजा अंतर्मन में,
संस्कार पूजा का फैला इन नैनन में.
अधरों ने मन्त्रों को छुआ,
हुआ चेहरा कमल
आस्था बनी हमारा गान.
हाथ जुड़े तुलसी पौधे को
हुआ हाथ में शक्ति का संचार.
शीश झुका,
फिर पाया उन्नत गौरव का सुविचार.
लगा थिरकने सारा पल-छिन
आंगन का गोबर गहराया .
देहरी पर से
विजय-कामना लेकर पद-चिन्ह
काल-खण्ड का
नभ के नीचे तन लहराया.
शाम झुका तुलसी-चौरे पर
चौरे के सोंधी माटी पर
गंध हवा ने छुआ.
हुआ मन पल्लव
शीतल हुआ वितान.
लौटा चरण कर्म-भूमि से
कुरुक्षेत्र के ,
अंतर्निहित उष्णता शीतल
स्निग्ध श्रेय से .
दीया जलाया इस आंचल ने
घूंघट सरका
आओ मेरे प्राण.
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