तुलसीदास _
सम्मानित ब्राह्मण कुल में था जन्मा पूत ललामा
हुलसी थी हुलसी माता , पिता आत्माराम।
थे नक्षत्र मूल में जन्मे, माता स्वर्ग सिधारी
पितृचरण को अशुभ पुत्र यह दीख रहा था भारी
पांच वर्ष की उम्र और यह बालक हुआ अनाथ
राम-राम बोला करता था सदाराम थे साथ
गुरु नरहरि की कृपा, मिला बालक को विश्राम
उनका ही आशीष फला, तुलसी ने पाया नाम
शेष सनातन जी से पाया शास्त्र वेद का ज्ञान
कंठ सुरीला ,कथा बांच खींच रहा था जीवनयान
पंडित दीन बंधु ने बालक की क्षमता देखी, देखा हाथ
बेटी रत्ना को ब्याहा बस इसी युवा के साथ
तपते मरू को मिले बरसते बादल का ज्यों साथ
हर पल तुलसी थामे रहते रत्ना ही का हाथ
गई मायके रत्ना ,तुलसी दौड़े पीछे आए
रत्ना को उनका पागलपन क्यों कर कैसे भाए
बोलीं_ धिक् इस प्रेम को देखो जग की रीति
ऐसी जो श्रीराम मंह होती न भव-भीति
यही चाम का प्रेम राम से जुड़ा, थी अनंत गहराई
राम कृपा से ‘रामरचितमानस ‘की रचना हमने पाई
सब पूराण निगमागम सम्मत और
ज्ञान की बात
आलोकित जग हुआ ज्ञान से ,
बीती काली रात
हनुमान के भक्त राम का ही जपते बस नाम
ऐसे विश्रुत राम भक्त को
जग से अब क्या काम
तुलसी गई है प्रतिभाएं अनंत
किंतु, तुलसी की प्रतिभा को तोलना कठिन है
तुलसी तुलसी- दल है पूत यह सुपूत मानो पंक का नलिन है।
__चारूमित्रा