तुरपाइयाँ दिखती रहीं
बुझते हुए दीपक में कुछ बीनाइयाँ दिखती रहीं
हाथ हिलाती दूर तक परछाइयाँ दिखती रहीं
शान से चलता है बेटा तानकर सीना यहाँ
माँ-बाप के पैरों में पर बीवाइयाँ दिखती रहीं
खप गया औलाद की खातिर सुनो उस बाप के
ज़िस्म पर बस वक्त़ की अँगड़ाइयाँ दिखती रहीं
बेटी विदा होकर चली जब छोड़कर के मायका
बचपन से नाता तोड़ती शहनाइयाँ दिखती रहीं
जख्म़ अपनों के दिए सिलकर छुपाती कब तलक़
कोशिश बहुत की माँ ने पर तुरपाइयाँ दिखती रहीं
घर भरा पूरा बनाया फिर भी अंतिम मोड़ पर
महफ़िलों में साथ बस तनहाइयाँ दिखती रहीं
हाथ मिलते थे,गले मिलते थे जब मिलते थे पर
दो दिलों के बीच हरदम खाइयाँ दिखती रहीं
राह-ए-मोहब्ब़त में कदम ‘संजय’ के जब से बढ़ चले
हर सड़क,हर मोड़ पर रुसवाइयाँ दिखती रहीं