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11 Apr 2023 · 1 min read

तुम

सांझ ढलती रही दिन भी निकलता ही रहा
स्पंदन भी हृदय में बरसों से बना ही रहा
किरण बनके जबसे आई हो दिनकर की तुम
अब तो हरदम प्रदीप्त मेरा संसार भी हो रहा

संजय श्रीवास्तव
11=4=2023

Language: Hindi
240 Views
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