तुम
अकड़ गयीं
मेरी रीढ़ की
सारी हड्डियां
और तन गयीं हैं
सारी नसें
मेरी गर्दन कीं
नहीं झुकता
अब यह सर
कहीं किसी के आगे
मन्दिर, मस्जिद
चर्च, गरुद्वारा
सब लगते हैं
व्यर्थ मुझे
जाने क्यों
जब से तुम
हो गए हो पराये।।
****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”
अकड़ गयीं
मेरी रीढ़ की
सारी हड्डियां
और तन गयीं हैं
सारी नसें
मेरी गर्दन कीं
नहीं झुकता
अब यह सर
कहीं किसी के आगे
मन्दिर, मस्जिद
चर्च, गरुद्वारा
सब लगते हैं
व्यर्थ मुझे
जाने क्यों
जब से तुम
हो गए हो पराये।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”