तुम
सम्बन्ध या रिश्ते यदि,
नामों में बंध पाते-
तो कितने ही रिश्ते,
क्यों अनाम रह जाते।
बन्धु, मीत, साथी सब
तुमको समझती हूँ,
शब्दों में भाव का-
सूत्र स्वयम बुनती हूँ।
अनछुए अपनत्व का-
आभास ही विश्वास है,
अधूराहो या पूरा-
बस यही मेरे पास है।