“तुम हक़ीक़त हो ख़्वाब हो या लिखी हुई कोई ख़ुबसूरत नज़्म”
बादल भी जहाँ पहाड़ों को छू कर चलते है, उन पहाड़ों में ही कहीं आशियाँ है मेरा, बस यहीं तुमको छू कर महसूस करना है तुम हक़ीक़त हो या कोई ख़्वाब मेरा,
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी रह गई है इन पहाड़ों में कहीं, बस इन्हीं बादलों के बीच तुम्हें जी भर कर देखना है ज़रा।
“लोहित टम्टा”