तुम हो
व्यूह ध्वस्त कर तिमिर रात्रि का
अरुणोदय का वंदन तुम हो l
झंकृत कर जीवन वीणा के
तारों का स्पंदन तुम हो ll
कविता में तुम , छंद में हो तुम
जीवन के प्रति द्वन्द में हो तुम ,
रक्षा कवच कुत्सित दृष्टि का
चक्षु समाहित अंजन तुम हो l
झंकृत कर जीवन वीणा के
तारों का स्पंदन तुम हो ll
पुष्पों के मकरंद में हो तुम ,
भीनी मधुर सुगंध में हो तुम ,
प्रस्फुटित कलियों के तन पर
मोहित भ्रमर का गुंजन तुम हो
झंकृत कर जीवन वीणा के
तारों का स्पंदन तुम हो
पथ भी तुम , गंतव्य भी हो तुम
विस्तृत नभ सी भव्य भी हो तुम
आहत पीड़ित तप्त हृदय को
शीतल करती चन्दन तुम हो l
झंकृत कर जीवन वीणा के
तारों का स्पंदन तुम हो ll