“तुम हो तो जीवन में मेरे कुछ रंग है”
यूँ प्रेम का इज़हार
जरूरी तो नहीं
लेकिन
अहसास को मूर्त-रूप
देने की लोलुपता में
अनुभव की कुछ झुर्रियों को
अक्षरों की बैशाखी थमाकर
तुम्हारे समक्ष
दिल का उद्गार
कर रहा हूँ कि
“तुम हो तो
जीवन में मेरे कुछ रंग है ।”
जीवन की नियमित
रफ्तार में
अभिशप्त / प्रताड़ित सा
खुद को महसूस
करता था, परन्तु
तुम्हारे आगमन से
स्वप्न को नई उड़ान मिली
आशाओं के कोंपल फूटे
ज़िन्दगी को दिशा मिली
विचलित हृदय में रस बरसने लगे।
इस तरह उभरे रिश्तों में भी
कई जगह
कलुषित गाँठे पड़े।
प्रेषित कटु शब्दों से
आहत हुये हम दोनों,
सृजित अहं के भाव भी
चुभे हैं कई बार
किन्तु
धैर्य और सामञ्जस्य
की अग्नि में जलकर
और कंचन हो चला है मन।
प्रेम के आधिपत्य में
धूमिल नहीं पड़ते अब ये मन,
विवाद के भँवर नहीं पड़ते,
स्नेह-संवेदनाओं से
ये और भी परिमार्जित हुए हैं,
फैला आसमान सा
अब इसने व्यापकता पाई है।
देखो !! शब्दों के
बनावट / सजावट से
मैं इसे उकेर नहीं सकता,
न ही परिभाषित कर सकता हूँ
लेकिन
यह सच है कि
“तुम हो तो
जीवन में मेरे कुछ रंग है।”