तुम हो “अटल”
तुम थे अटल तुम हो अटल
इस पार भी, उस पार भी ,
वक्त को डिगना ही था
तुम नाव थे मझधार भी!
था लोभ सत्ता का नहीं
बस मोह कविता से घना ,
धन्य मां की कोख को
जिन लाल तुम जैसा जना !
सत्ता के गलियारों मे तुम
सदियों तक कहते रहोगे ,
बन मलय संगीत में तुम
वीर रस पढते रहोगे !
मंच चाहे जो भी हो
इस पार हो उस पार हो ,
श्रोता हो न हो कोई
बस अटल आधार हो !
निर्भीक हो बेबाक हो
तुम रौद्र भी श्रंगार भी ,
कुछ ओस की बूंदें हो तुम
तुम बर्फ भी अंगार भी!
तुम थे अटल तुम हो अटल
इस पार भी, उस पार भी ,
वक्त को डिगना ही था
तुम नाव थे मझधार भी!
प्रियंका मिश्रा _प्रिया©®