Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Dec 2024 · 1 min read

तुम सोडियम को कम समझते हो,

तुम सोडियम को कम समझते हो,
क्लोरीन के शानो-शौकत में उलझते हो।
हां, दोनों की जोड़ी पर सवाल उठा लेते हो,
हैसियत अलग है, मिलने से रोक लेते हो।

देखो, क्लोरीन अकेले कुछ नहीं बन नहीं पाया,
जब तक सोडियम ने खुद को नहीं मिलाया।
और अब तुम NaCl का स्वाद लेते हो।

21 Views

You may also like these posts

हरियर जिनगी म सजगे पियर रंग
हरियर जिनगी म सजगे पियर रंग
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरे हमसफ़र 💗💗🙏🏻🙏🏻🙏🏻
मेरे हमसफ़र 💗💗🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Seema gupta,Alwar
चुल्लू भर पानी में
चुल्लू भर पानी में
Satish Srijan
*दिव्य दृष्टि*
*दिव्य दृष्टि*
Rambali Mishra
और एक रात! मध्यरात्रि में एकाएक सारे पक्षी चहचहा उठे। गौवें
और एक रात! मध्यरात्रि में एकाएक सारे पक्षी चहचहा उठे। गौवें
पूर्वार्थ
माँ तुझे फिर से
माँ तुझे फिर से
bhandari lokesh
#सम_सामयिक
#सम_सामयिक
*प्रणय*
रे मन! यह संसार बेगाना
रे मन! यह संसार बेगाना
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'
वादा
वादा
Bodhisatva kastooriya
रुपया दिया जायेगा,उसे खरीद लिया जायेगा
रुपया दिया जायेगा,उसे खरीद लिया जायेगा
Keshav kishor Kumar
#विषय उत्साह
#विषय उत्साह
Rajesh Kumar Kaurav
लंका दहन
लंका दहन
Jalaj Dwivedi
*मन् मौजी सा भँवरा मीत दे*
*मन् मौजी सा भँवरा मीत दे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति
Savitri Dhayal
4405.*पूर्णिका*
4405.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दोहा पंचक. . . . जीवन
दोहा पंचक. . . . जीवन
Sushil Sarna
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
अब तो रिहा कर दो अपने ख्यालों
शेखर सिंह
Quote..
Quote..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
About your heart
About your heart
Bidyadhar Mantry
मां कूष्मांडा
मां कूष्मांडा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
मुक्तक
मुक्तक
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
बेटियाँ
बेटियाँ
Shweta Soni
"आंखरी ख़त"
Lohit Tamta
ज़माने में
ज़माने में
surenderpal vaidya
शंभू नाथ संग पार्वती भजन अरविंद भारद्वाज
शंभू नाथ संग पार्वती भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज
आ फिर लौट चलें
आ फिर लौट चलें
Jai Prakash Srivastav
मर्यादा है उत्तम
मर्यादा है उत्तम
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
शरारत – कहानी
शरारत – कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*सेना वीर स्वाभिमानी (घनाक्षरी: सिंह विलोकित छंद)*
*सेना वीर स्वाभिमानी (घनाक्षरी: सिंह विलोकित छंद)*
Ravi Prakash
बुन रही हूँ,
बुन रही हूँ,
लक्ष्मी सिंह
Loading...