तुम सूरज मैं सांझ का दिया
तुम सूरज मैं सांझ का दिया,
तुम्हारे ढलते ही जल जाऊंगी,
कोई नहीं सुनेगा मेरी आवाज़,
तुम चले जाओगे चुपचाप,
मेरी मद्धिम रोशनी रहेगी,
पर रात के अंधेरे को चीरेगी,
मैं रात भर चुपचाप जलूंगी,
किसी को अपना दर्द नहीं कहूंगी,
अकेले जलना भी कितना तन्हा,
पर न जाने होते हैं कितने दिल जवां,
कहीं मोहब्बत तो कहीं रुसवाई,
मैं तो जानती हूं सब की सच्चाई,
स्वयं को जलाकर रोशनी करती हूं,
फिर भी हर शाम को जलती हूं,
तुम्हारे आने पर मेरा अस्तित्व नहीं होता,
फिर भी हर बार तुम्हारी बाट जोहती हूं,
क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूं
हर रात तुम्हारी कमी पूरी करती हूं
तुमसे मिलने को तरसती हूं,
पर तुम होते हो तो मैं नहीं होती,
मैं होती हूं तो तुम नहीं होते,
यह कैसी विडंबना है,
हम दोनों ही रोशनी देते हैं,
पर एक साथ नहीं रहते हैं,
माना तुम विश्वविख्यात हो,
पर मेरे प्यार से भी अज्ञान हो,
मैं आज भी तुम्हारी प्रतीक्षा में हूं,
तुम्हारे साथ मैं भी रोशनी करूं,
पर ऐसा कभी नहीं होता,
तुम्हारे आते ही मेरा मूल्य नहीं रहता,
मैं तुम्हारे लिए तरसती हूं,
फिर भी हर रात जलती हूं!!
दीपाली कालरा