तुम सही मैं गलत
तुम सही मैं गलत
अपने संस्कारों के बोझ तले
दबती मैं
शायद !
इस कारण चुप थी मैं
कई बार के ताने
कर अनसूनी
जिंदगी का गीत गुनगुनाने
निकल पड़ती मैं
शायद!
इस कारण चुप थी मैं
जाने कितनी बार झुकी
तुम्हारे प्यार में
अपने स्वाभिमान का गला घोंटती मै
शायद!
इस कारण चुप थी मैं
अपने पिता की परी
गर्व से भरी
चाहती है पिता को खुश रखना
जिंदगी जीना सीखती मैं
शायद!
इस कारण चुप थी मैं
हर बार गलती मेरी नहीं होती
पर पुरुष का अभिमान
और मेरी दबी मुस्कान
तुम्हारी खुशी देखती मैं
शायद!
इस कारण चुप थी मैं।