तुम सम्भलकर चलो
(शेर)- जब तक था दौलतवाला मैं, खूब बने लोग दोस्त मेरे।
करके बर्बाद और करके अकेला, चले गये सभी दोस्त मेरे।।
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धोखा है पग पग पर, तुम सम्भलकर चलो।
होंगे किस भेष में लूटेरे, तुम देखकर चलो।
धोखा है पग पग पर————————।।
कोई देगा तुमको लालच, सम्मान दिलाने का।
महलों के सपनें दिखाकर, दौलत बढ़ाने का।।
लूटेंगे तुमसे दोनों ही दौलत, होश में चलो।
धोखा है पग पग पर——————–।।
आयेंगे रूप बदलकर बहुत, मदद तुमसे पाने को।
मतलब पूरा करके अपना, किश्ती तुम्हारी डूबोने को।।
बैठा होगा किस डाल पे उल्लू , आँखें खोलकर चलो।
धोखा है पग पग पर————————।।
मुहँ में राम, बगल में छुरी वाले, बहुत मिलेंगे।
चेहरे से दिखने वाले शरीफ, रूह से कातिल मिलेंगे।।
दिल से नहीं, दिमाग से लो काम, सोचकर चलो।
धोखा है पग पग पर————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)